पढ़ना कभी कविताएं पढ़ना कभी कविताएं
भौतिकवाद की इस आँधी में उजड़ी हर परिपाटी गुम। भौतिकवाद की इस आँधी में उजड़ी हर परिपाटी गुम।
तेल से तो तेरे ज़ख्म अभी तक भरे नही है तेल से तो तेरे ज़ख्म अभी तक भरे नही है
आह! कितने विकल-जन-मन मिल चुके; आह! कितने विकल-जन-मन मिल चुके;
वा छवि को रसखान विलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी वा छवि को रसखान विलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी
गुजरे हुए पलो को संजोने लगे। आज अतीत की यादो मे खोने लगे। गुजरे हुए पलो को संजोने लगे। आज अतीत की यादो मे खोने लगे।